भिंडी की खेती

भिंडी-एक लोकप्रिय एवं लाभकारी सब्जी

भिंडी की फसल सारा साल उगाई जाती है और यह मैलवैसीआई प्रजाति से संबंधित है। इसका मूल स्थान इथीओपिया है। यह विशेष तौर पर उष्ण और उपउष्ण क्षेत्रों में उगाई जाती है। भारत में भिंडी उगाने वाले मुख्य प्रांत उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिमी बंगाल और उड़ीसा हैं। भिंडी की खेती विशेष तौर पर इसे लगने वाले हरे फल के कारण की जाती है। इसके सूखे फल और छिल्के को कागज़ उदयोग में और रेशा (फाइबर) निकालने के लिए प्रयोग किया जाता है। भिंडी विटामिन, प्रोटीन, कैल्शियम और अन्य खनिजों का मुख्य स्त्रोत है।

भूमि व खेत की तैयारी

भिंडी के लिये दीर्घ अवधि का गर्म व नम वातावरण श्रेष्ठ माना जाता है। बीज उगने के लिये 27-30 डिग्री सेग्रे तापमान उपयुक्त होता है तथा 17 डिग्री सें.ग्रे से कम पर बीज अंकुरित नहीं होता। यह फसल ग्रीष्म तथा खरीफ, दोनों ही ऋतुओं में उगाई जाती है। भिंडी को उत्तम जल निकास वाली सभी तरह की भूमियों में उगाया जा सकता है। भूमि का पी0 एच मान 7.0 से 7.8 होना उपयुक्त रहता है। भूमि की दो-तीन बार जुताई कर भुरभुरी कर तथा पाटा चलाकर समतल कर लेना चाहिए।

उत्तम किस्में

पूसा ए-4

  • यह भिंडी की एक उन्नत किस्म है।
  • यह प्रजाति 1995 में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान,नई दिल्ली द्वारा निकाली गई है।
  • यह एफिड तथा जैसिड के प्रति सहनशील है।
  • यह पीतरोग यैलो वेन मोजैक विषाणु रोधी है।
  • फल मध्यम आकार के गहरे, कम लस वाले, 12-15 सेमी लंबे तथा आकर्षक होते हैं।
  • बोने के लगभग 15 दिन बाद से फल आना शुरू हो जाते है तथा पहली तुड़ाई 45 दिनों बाद शुरु हो जाती है।
  • इसकी औसत पैदावार ग्रीष्म में 10 टन व खरीफ में 15 टन प्रति है।

परभनी क्रांति

  • यह किस्म पीत-रोगरोधी है।
  • यह प्रजाति 1985 में मराठवाड़ाई कृषि विश्वविद्याल य, परभनी द्वारा निकाली गई है।
  • फल बुआई के लगभग 50 दिन बाद आना शुरू हो जाते हैं।
  • फल गहरे हरे एवं 15-18 सेंमी लम्बे होते हैं।
  • इसकी पैदावार 9-12 टन प्रति है।

पंजाब-7

यह किस्म भी पीतरोग रोधी है। यह प्रजाति पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना द्वारा निकाली गई है। फल हरे एवं मध्यम आकार के होते हैं। बुआई के लगभग 55 दिन बाद फल आने शुरू हो जाते हैं। इसकी पैदावार 8-12 टन प्रति है।

अर्का अभय

  • यह प्रजाति भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बैंगलोर द्वारा निकाली गई हैं।
  • यह प्रजाति येलोवेन मोजेक विषाणु रोग रोधी हैं।
  • इसके पौधे ऊँचे 120-150 सेमी सीधे तथा अच्छी शाखा युक्त होते हैं।

अर्का अनामिका

  • यह प्रजाति भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बैंगलोर द्वारा निकाली गई है।
  • यह प्रजाति येलोवेन मोजेक विषाणु रोग रोधी है।
  • इसके पौधे ऊँचे 120-150 सेमी सीधे व अच्छी शाखा युक्त होते हैं।
  • फल रोमरहित मुलायम गहरे हरे तथा 5-6 धारियों वाले होते हैं।
  • फलों का डंठल लम्बा होने के कारण तोड़ने में सुविधा होती है।
  • यह प्रजाति दोनों ऋतुओं में उगाई जा सकती हैं।
  • पैदावार 12-15 टन प्रति है हो जाती हैं।

वर्षा उपहार

  • यह प्रजाति चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार द्वारा निकाली गई है।
  • यह प्रजाति येलोवेन मोजेक विषाणु रोग रोधी हैं।
  • पौधे मध्यम ऊँचाई 90-120 सेमी तथा इंटरनोड पासपास होते हैं।
  • पौधे में 2-3 शाखाएं प्रत्येक नोड से निकलती हैं।
  • पत्तियों का रंग गहरा हरा, निचली पत्तियां चौड़ी व छोटे छोटे लोब्स वाली एवं ऊपरी पत्तियां बड़े लोब्स वाली होती है।
  • वर्षा ऋतु में 40 दिनों में फूल निकलना शुरु हो जाते हैं व फल 7 दिनों बाद तोड़े जा सकते हैं।
  • फल चौथी पांचवी गाठों से पैदा होते हैं। औसत पैदावार 9-10 टन प्रति हे. होती हैं।
  • इसकी खेती ग्रीष्म ऋतु में भी कर सकते हैं।

हिसार उन्नत

  • यह प्रजाति चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार द्वारा निकाली गई है।
  • पौधे मध्यम ऊँचाई 90-120 सेमी तथा इंटरनोड पासपास होते हैं।
  • पौधे में 3-4 शाखाएं प्रत्येक नोड से निकलती हैं। पत्तियों का रंग हरा होता हैं।
  • पहली तुड़ाई 46-47 दिनों बाद शुरु हो जाती है।
  • औसत पैदावार 12-13 टन प्रति है होती हैं।
  • फल 15-16 सेंमी लम्बे हरे तथा आकर्षक होते हैं।
  • यह प्रजाति वर्षा तथा गर्मियों दोनों समय में उगाई जाती हैं।

वी.आर.ओ.-6

  • इस किस्म को काशी प्रगति के नाम से भी जाना जाता है।
  • यह प्रजाति भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान,वाराणसी द्वारा 2003 में निकाली गई हैं।
  • यह प्रजाति येलोवेन मोजेक विषाणु रोग रोधी हैं।
  • पौधे की औसतन ऊँचाई वर्षा ऋतु में 175 सेमी तथा गर्मी में 130 सेमी होती है।
  • इंटरनोड पासपास होते हैं।
  • औसतन 38 वें दिन फूल निकलना शुरु हो जाते हैं ।
  • गर्मी में इसकी औसत पैदावार 13.5 टन एवं बरसात में 18.0 टन प्रति हे. तक ली जा सकती है।

बीज की मात्रा व बुआई का तरीका

सिंचित अवस्था में 2.5 से 3 किग्रा तथा असिंचित दशा में 5-7 किग्रा प्रति हेक्टेअर की आवश्यकता होती है। संकर किस्मों के लिए 5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर की बीजदर पर्याप्त होती है। भिंडी के बीज सीधे खेत में ही बोये जाते हैं। बीज बोने से पहले खेत को तैयार करने के लिये 2-3 बार जुताई करनी चाहिए। वर्षाकालीन भिंडी के लिए कतार से कतार दूरी 40-45 सें.मी. एवं कतारों में पौधे की बीच 25-30 सें.मी. का अंतर रखना उचित रहता है। ग्रीष्मकालीन भिंडी की बुवाई कतारों में करनी चाहिए। कतार से कतार की दूरी 25-30 सें.मी. एवं कतार में पौधे से पौधे के मध्य दूरी 15-20 से.मी. रखनी चाहिए। बीज की 2 से 3 से.मी. गहरी बुवाई करनी चाहिए। बुवाई के पूर्व भिंडी के बीजों को 3 ग्राम मेन्कोजेब कार्बेन्डाजिम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। पूरे खेत को उचित आकार की पट्टियों में बांट लें जिससे कि सिंचाई करने में सुविधा हो। वर्षा ऋतु में जल भराव से बचाव हेतु उठी हुई क्यारियों में भिण्डी की बुवाई करना उचित रहता है।

बुआई का समय

ग्रीष्मकालीन भिंडी की बुवाई फरवरी-मार्च में तथा वर्षाकालीन भिंडी की बुवाई जून-जुलाई में की जाती है। यदि भिंडी की फसल लगातार लेनी है तो तीन सप्ताह के अंतराल पर फरवरी से जुलाई के मध्य अलग-अलग खेतों में भिंडी की बुवाई की जा सकती है।

खाद और उर्वरक

भिंडी की फसल में अच्छा उत्पादन लेने हेतु प्रति हेक्टेर क्षेत्र में लगभग 15-20 टन गोबर की खाद एवं नत्रजन, स्फुर एवं पोटाश की क्रमशः 80 कि.ग्रा., 60 कि.ग्रा. एवं 60 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर की दर से मिट्टी में देना चाहिए। नत्रजन की आधी मात्रा स्फुर एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के पूर्व भूमि में देना चाहिए। नत्रजन की शेष मात्रा को दो भागों में 30-40 दिनों के अंतराल पर देना चाहिए।

निराई व गुड़ाई

नियमित निंदाई-गुड़ाई कर खेत को खरपतवार मुक्त रखना चाहिए। बोने के 15-20 दिन बाद प्रथम निंदाई-गुड़ाई करना जरुरी रहता है। खरपतवार नियंत्रण हेतु रासायनिक कीटनाशकों का भी प्रयोग किया जा सकता है। खरपतवारनाशी फ्ल्यूक्लरेलिन के 1.0 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से पर्याप्त नम खेत में बीज बोने के पूर्व मिलाने से प्रभावी खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है।

सिंचाई

सिंचाई मार्च में 10-12 दिन, अप्रैल में 7-8 दिन और मई-जून में 4-5 दिन के अन्तर पर करें। बरसात में यदि बराबर वर्षा होती है तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है ।

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रोग एवं कीट

FAQ

🌿 भिंडी की खेती –  (FAQ)


प्र.1: भिंडी की फसल का महत्व क्या है?
उ.1: भिंडी भारत की एक लोकप्रिय एवं लाभकारी सब्जी है। यह विटामिन, प्रोटीन, कैल्शियम और खनिजों से भरपूर होती है। इसके सूखे फल और रेशे का उपयोग कागज़ और फाइबर उद्योग में भी होता है।
प्र.2: भिंडी की खेती किन राज्यों में प्रमुख रूप से होती है?
उ.2: उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा भिंडी उत्पादन के प्रमुख राज्य हैं।
प्र.3: भिंडी के लिए उपयुक्त जलवायु और तापमान क्या होना चाहिए?
उ.3:
  • गर्म और नम वातावरण इसकी वृद्धि के लिए सर्वोत्तम है।
  • बीज अंकुरण के लिए 27–30°C तापमान उपयुक्त है।
  • 17°C से कम तापमान पर बीज अंकुरित नहीं होते।
प्र.4: भिंडी की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी कैसी होनी चाहिए?
उ.4:
  • जल निकास वाली दोमट या बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है।
  • मिट्टी का pH मान 7.0–7.8 होना चाहिए।
  • भूमि को 2–3 बार जुताई कर भुरभुरी और समतल कर लें।
प्र.5: भिंडी की प्रमुख उन्नत किस्में कौन-कौन सी हैं?
उ.5:
  1. पूसा ए-4 – एफिड व जैसिड सहनशील, येलो वेन मोजैक रोग रोधी, पैदावार 10–15 टन/हे.
  2. परभनी क्रांति – पीत-रोगरोधी, पैदावार 9–12 टन/हे.
  3. पंजाब-7 – रोगरोधी, 8–12 टन/हे.
  4. अर्का अभय – ऊँचे पौधे, रोगरोधी।
  5. अर्का अनामिका – दोनों मौसम में उपयुक्त, पैदावार 12–15 टन/हे.
  6. वर्षा उपहार – वर्षा ऋतु में उपयुक्त, पैदावार 9–10 टन/हे.
  7. हिसार उन्नत – गर्मी और वर्षा दोनों मौसम में उपयुक्त, पैदावार 12–13 टन/हे.
  8. वी.आर.ओ.-6 (काशी प्रगति) – रोगरोधी, पैदावार 13.5–18 टन/हे.
प्र.6: भिंडी की बुवाई का समय क्या होता है?
उ.6:
  • ग्रीष्मकालीन भिंडी: फरवरी–मार्च में।
  • वर्षाकालीन भिंडी: जून–जुलाई में।
    👉 निरंतर फसल हेतु फरवरी से जुलाई के बीच 3 सप्ताह के अंतराल पर बुवाई करें।
प्र.7: बीज की मात्रा कितनी चाहिए?
उ.7:
  • सिंचित भूमि में: 2.5–3 कि.ग्रा./हे.
  • असिंचित भूमि में: 5–7 कि.ग्रा./हे.
  • संकर किस्मों के लिए: 5 कि.ग्रा./हे.
प्र.8: बुवाई की विधि क्या है?
उ.8:
  • ग्रीष्मकालीन फसल के लिए कतार से कतार दूरी: 25–30 से.मी., पौधे से पौधे की दूरी: 15–20 से.मी.
  • वर्षाकालीन फसल के लिए कतार से कतार दूरी: 40–45 से.मी., पौधे से पौधे की दूरी: 25–30 से.मी.
  • बीज 2–3 से.मी. गहराई पर बोएँ।
  • बीज को बुवाई से पहले 3 ग्राम मेन्कोजेब या कार्बेन्डाजिम प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित करें।
  • वर्षा के मौसम में उठी हुई क्यारियों में बुवाई करें ताकि जलभराव न हो।
प्र.9: खेत की तैयारी कैसे करें?
उ.9:
  • 2–3 बार जुताई कर मिट्टी को भुरभुरी बनाएं।
  • पाटा चलाकर खेत समतल करें।
  • सिंचाई के लिए खेत को उचित आकार की पट्टियों में बाँट लें।
प्र.10: भिंडी में कौन-कौन से खाद एवं उर्वरक दें?
उ.10:
  • गोबर की खाद: 15–20 टन/हे.
  • नत्रजन: 80 कि.ग्रा./हे.
  • स्फुर (फॉस्फोरस): 60 कि.ग्रा./हे.
  • पोटाश: 60 कि.ग्रा./हे.
    👉 नत्रजन की आधी मात्रा और अन्य सभी उर्वरक बुवाई से पहले दें।
    बाकी नत्रजन को दो बराबर भागों में 30–40 दिन के अंतर पर दें।
प्र.11: खरपतवार नियंत्रण कैसे करें?
उ.11:
  • पहली निराई–गुड़ाई: बुवाई के 15–20 दिन बाद करें।
  • खरपतवारनाशी फ्ल्यूक्लोरालिन (1.0 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व/हे.) को बुवाई से पहले नम मिट्टी में मिलाने से प्रभावी नियंत्रण होता है।
प्र.12: सिंचाई कब और कितनी बार करनी चाहिए?
उ.12:
  • मार्च: हर 10–12 दिन में।
  • अप्रैल: हर 7–8 दिन में।
  • मई–जून: हर 4–5 दिन में।
  • वर्षा ऋतु: पर्याप्त वर्षा होने पर सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती।
प्र.13: भिंडी की पहली तुड़ाई कब की जाती है?
उ.13:
  • किस्म के अनुसार बुवाई के 45–50 दिन बाद फल तोड़ना शुरू कर सकते हैं।
  • तुड़ाई 2–3 दिन के अंतर पर करनी चाहिए ताकि फल कोमल और बाजार योग्य रहें।
प्र.14: भिंडी की औसत पैदावार कितनी होती है?
उ.14:
  • सामान्यतः 10–18 टन प्रति हेक्टेयर, किस्म और मौसम के अनुसार।
प्र.15: भिंडी की फसल से अतिरिक्त लाभ कैसे लिया जा सकता है?
उ.15:
  • फाइबर और बीज प्रसंस्करण उद्योग में उपयोग से अतिरिक्त आमदनी।
  • जैविक खेती में इसे दलहनी फसलों के साथ अंतरवर्ती फसल के रूप में उगाया जा सकता है।