अदरख़ की खेती

अदरख़ की खेती कैसे करें

अदरक भारत की एक अहम मसाले वाली फसल है। भारत अदरक की पैदावार में सबसे आगे है। कर्नाटक, उड़ीसा,  अरूणाचल प्रदेश,  आसाम,  मेघालय और गुजरात अदरक पैदा करने वाले मुख्य प्रांत है। अदरक की खेती एक बहुमुखी और अत्यधिक मूल्यवान मसाला फसल है, जो अपने सुगंधित और औषधीय गुणों के लिए जानी जाती है। यह मार्गदर्शिका उच्च पैदावार प्राप्त करने के लिए अदरक की खेती और प्रबंधन के सर्वोत्तम तरीकों को बताती है।

कैसे करें अदरक की उन्नत खेती? 

मिट्टी :  इसकी खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। मिट्टी में भरपूर मात्रा में जीवाश्म और कार्बनिक पदार्थ होना चाहिए। इसकी खेती के लिए मिट्टी का पी.एच स्तर 5.6 से 7 होना अच्छा होता है। खेत में जल निकासी का उचित प्रबंध करें।

जलवायु : अदरक की खेती के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। अदरक की अच्छी उपज के लिए तापमान को 20 से 30 डिग्री सेल्सियस पर रखना उपयुक्त होता है। इससे अधिक तापमान पर फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, जबकि कम तापमान (10 डिग्री सेल्सियस से कम) के कारण पत्तों और प्रकन्दों को नुकसान पहुंच सकता है।

बुवाई का समय :

  • दक्षिण भारत में अदरक की बुवाई का सबसे उत्तम समय अप्रैल और मई महीने है।
  • इस समय पर बुवाई करने से फसल दिसंबर महीने तक पूरी तरह से तैयार हो जाती है।
  • मध्य और उत्तर भारत में अप्रैल से जून तक बुवाई की जा सकती है, लेकिन इस समय से बाद में बुवाई करने पर कंद के सड़ने की संभावना बढ़ जाती है।
  • पहाड़ी क्षेत्रों में मध्य मार्च के आसपास बुवाई करने से अच्छी उपज हासिल की जा सकती है।

किस्में : अदरक की खेती के लिए विभिन्न किस्में उपलब्ध हैं, जिनमें हिमगिरि, वरदा, जेम्बो और रियो-डी-जनरो प्रमुख हैं। प्रत्येक किस्म की अपनी विशेषताएं और उत्पादन क्षमता होती है, जो विभिन्न जलवायु और मिट्टी की स्थितियों में उपयुक्त होती हैं।

बीज की मात्रा : अदरक की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर 1500-1800 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीज उपचार के लिए प्रति लीटर पानी में 3 ग्राम मैंकोजेब या कार्बेन्डाजिम मिलाएं, और इस मिश्रण में बीज कंदों को 30 मिनट तक डुबोकर रखें। फिर उपचारित कंदों को थोड़ी देर छांव में सुखाकर बुवाई करें।

खेत की तैयारी :

  • अदरक की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। जिसका पीएच मान 5.6 से 6.5 के बीच होता है।
  • खेत की तैयारी में मिट्टी को धूप में सुखाना चाहिए।
  • मानसून से पहले 2-3 बार खेत की जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी बना लें।
  • खेत में गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट डालें।
  • फसल के लिए एक मीटर चौड़ाई, 15 सेंटीमीटर ऊंचाई और दूर क्यारी तैयार करें।
  • सिंचाई आधारित फसल के लिए 40 सेंटीमीटर ऊपर उठी हुई क्यारी बनाएं।
  • खेत की आखिरी जुताई में उर्वरकों का उपयोग करें।
  • खेत में जल निकासी का ध्यान रखें।

अदरक के कंद का चयन:

  • रोपाई के लिए 20-25 ग्राम वजन वाले प्रकंदों का चयन करें।
  • कंद में कम से कम 3 गांठ होनी चाहिए।
  • कंदों का आकार 2.5 सेंटीमीटर से 5 सेंटीमीटर तक होना चाहिए।

कंद उपचारित करने की विधि:

  • बुवाई से पहले प्रति लीटर पानी में 3 ग्राम मैंकोजेब मिला कर बीज कंदों को उपचारित करें।
  • मैंकोजेब के घोल में डालकर कंदों को 30 मिनट तक रखें।
  • उपचारित कंदों को छांव वाली जगह में 3 से 4 घंटे तक सुखाएं।

रोपाई की विधि:

  • खेत में कंदों की बुवाई क्यारियों में करें।
  • सभी क्यारियों के बीच 25 से 30 सेंटीमीटर की दूरी रखें।
  • पौधों से पौधों के बीच की दूरी भी 20 से 25 सेंटीमीटर होनी चाहिए।
  • खेत में हल्के गड्ढे तैयार करें और सभी गड्ढों में कंदों को रखें और उन्हें गोबर की खाद और मिट्टी से ढक दें।

खाद एवं उर्वरक प्रबंधन :

  • खेत की तैयारी के समय प्रति एकड़ जमीन में 10 tan गोबर की खाद मिलाएं। सड़ी हुई गोबर की खाद के बजाय आप कम्पोस्ट खाद का भी प्रयोग कर सकते हैं।
  • खेत की तैयारी के समय, प्रति एकड़ जमीन में 25 किलोग्राम यूरिया, डी.ए.पी 40 किलोग्राम, और 40 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश) की मात्रा प्रयोग करें। पोटाश और फास्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई के समय डालें।
  • 19:19:19 दवा 5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
  • बुवाई के 45 दिनों के बाद 25 किलोग्राम यूरिया डालें।

सिंचाई :

  • बुवाई के तुरंत बाद पहली सिंचाई करें।
  • अच्छी फसल के लिए मिट्टी में नमी की कमी न होने दें।
  • टपक सिंचाई विधि से फसल की सिंचाई करने से बेहतर फसल प्राप्त किए जा सकते हैं।

खरपतवार प्रबंधन :

  • कंद की बुवाई क्यारियों में या मेड़ बनाकर लाइन में करना चाहिए। इससे निराई-गुड़ाई में आसानी होगी।
  • रोपाई के बाद खेत में पलवार बिछा देना चाहिए। इससे अंकुरण अच्छा होगा और खरपतवारों की समस्या कम होगी।
  • पलवार बिछाने के बाद भी यदि खेत में खरपतवार निकले तो उन्हें निराई-गुड़ाई के द्वारा निकाल देना चाहिए।
  • पौधों की ऊंचाई जमीन की सतह से 20-25 सेंटीमीटर ऊपर हो जाने पर पौधों की जड़ों पर मिट्टी चढ़ाना जरूरी है।
  • पहली निराई-गुड़ाई के बाद हर 25 दिन के अंतराल पर 2-3 निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। इससे अदरक के कंद को पोषक तत्वों के साथ-साथ हवा का उचित आवागमन होगा।
  • अदरक के कंद बनते समय जड़ों के पास कुछ कल्ले निकलने लगते हैं, जिन्हें निकाल देना चाहिए। इससे कंद की वृद्धि होती है। इन्हें निकालने के लिए खुरपी का उपयोग कर सकते हैं।

रोग एवं कीट :

  • मृदु विगलन: यह रोग अदरक के पौधों के लिए खतरनाक होता है। इसमें पौधों की पत्तियां पीली होकर सूख जाती हैं, खासकर जब खेत में पानी जमा होता है।
  • पर्ण चित्ती रोग: इस रोग में पत्तों पर सफेद धब्बे हो जाते हैं। यह खासतौर पर जुलाई से अक्टूबर महीने में फैलता है और पौधों की वृद्धि पर असर डालता है।
  • जीवाणु म्लानि: इस रोग में पौधों की पत्तियां पहले नीचे से पीली होने लगती हैं और फिर ऊपर की पत्तियां भी पीली पड़ जाती हैं।
  • सूत्रकृमि: यह रोग पौधों की जड़ों में गांठ बना देता है और पौधे सूख जाते हैं, जिससे फसल खराब हो जाती है।
  • कुरमुला कीट: यह कीट अदरक की जड़ों को खाती है और फसल को हानि पहुंचाती है। इसका प्रकोप सितंबर से अक्टूबर के बीच अधिक होता है।
  • अदरक की मक्खी (मैगट): ये कीट अदरक की फसल को खेत में और भंडार घर में नुकसान पहुंचाती हैं।

खुदाई : 

बुवाई के बाद फसल को तैयार होने में करीब 8 महीने समय लगता है। अदरक के पौधों की पत्तियां पीली होने पर खुदाई करें। खुदाई के बाद सावधानी से अदरक के कंदों से मिट्टी अलग करें। कंदों को साफ पानी से धोकर 1 दिन धूप में सुखाएं।

उपज : 

अदरक की उपज मौसम,किस्म एवं अन्य कई कारकों पर निर्भर करती है। हालांकि अदरक की उपज लगभग प्रति एकड़ के हिसाब से 60 से 80 क्विंटल होती है।

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रोग एवं कीट

FAQ

🌿 अदरक की खेती — सामान्य प्रश्न (FAQ )

1. अदरक क्या है और यह क्यों महत्वपूर्ण फसल है?

अदरक (Ginger) भारत की एक महत्वपूर्ण मसालेदार फसल है, जो अपने सुगंध, स्वाद और औषधीय गुणों के लिए प्रसिद्ध है। इसका उपयोग मसाले, चाय, दवा और अचार बनाने में किया जाता है।
भारत अदरक उत्पादन में विश्व में अग्रणी देश है।

2. भारत में अदरक की खेती कहाँ की जाती है?

अदरक की प्रमुख उत्पादक राज्य हैं —
कर्नाटक, ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश, असम, मेघालय, और गुजरात।
इसके अलावा मध्य और उत्तर भारत के कई राज्यों में भी इसकी खेती की जाती है।

3. अदरक की खेती के लिए किस प्रकार की मिट्टी उपयुक्त है?

  • बलुई दोमट मिट्टी (Sandy loam soil) सबसे उपयुक्त है।
  • मिट्टी में जैविक पदार्थ (organic matter) पर्याप्त मात्रा में होना चाहिए।
  • pH स्तर: 5.6 से 7.0 के बीच होना चाहिए।
  • खेत में अच्छी जल निकासी का प्रबंध करें, क्योंकि जल जमाव से कंद सड़ सकते हैं।

4. अदरक की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु क्या है?

  • गर्म और आर्द्र जलवायु में अदरक की खेती सफल होती है।
  • तापमान: 20°C से 30°C उपयुक्त है।
  • 10°C से कम तापमान और बहुत अधिक गर्मी दोनों फसल को नुकसान पहुँचा सकते हैं।

5. अदरक की बुवाई का सही समय क्या है?

क्षेत्र
बुवाई का समय
फसल तैयार होने का समय
दक्षिण भारत
अप्रैल–मई
दिसंबर
मध्य व उत्तर भारत
अप्रैल–जून
जनवरी–फरवरी
पहाड़ी क्षेत्र
मध्य मार्च
नवंबर–दिसंबर

6. अदरक की प्रमुख किस्में कौन-कौन सी हैं?

  • हिमगिरि (Himgiri)
  • वरदा (Varada)
  • जेम्बो (Jambo)
  • रियो-डी-जनरो (Rio-de-Janeiro)
👉 प्रत्येक किस्म की उत्पादन क्षमता और स्वाद अलग-अलग होता है।

7. अदरक की बुवाई के लिए बीज की मात्रा कितनी चाहिए?

  • प्रति हेक्टेयर 1500–1800 किलोग्राम बीज कंदों की आवश्यकता होती है।
बीज उपचार:
  • प्रति लीटर पानी में 3 ग्राम मैंकोजेब या कार्बेन्डाजिम मिलाकर बीज कंदों को 30 मिनट तक डुबोएँ।
  • छाँव में सुखाकर बुवाई करें।

8. खेत की तैयारी कैसे करें?

  • खेत की 2–3 बार जुताई करें और मिट्टी को भुरभुरा बनाएं।
  • गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट मिलाएं।
  • 1 मीटर चौड़ी, 15 सें.मी. ऊँची क्यारियाँ बनाएं।
  • जल निकासी की उचित व्यवस्था रखें।
  • खेत की आखिरी जुताई में उर्वरक डालें।

9. अदरक के कंद का चयन कैसे करें?

  • स्वस्थ, रोगमुक्त कंद चुनें।
  • प्रत्येक कंद का वजन 20–25 ग्राम और लंबाई 2.5–5 सें.मी. हो।
  • हर कंद में कम से कम 3 गाँठें (buds) हों।

10. बुवाई की विधि क्या है?

  • क्यारियों में 20–25 सें.मी. गहरी लाइन बनाएं।
  • पौध से पौध की दूरी 20–25 सें.मी. और कतार से कतार की दूरी 25–30 सें.मी. रखें।
  • कंदों को गोबर की खाद और मिट्टी से ढक दें।