अरहर की खेती

अरहर की उन्नतशील खेती

दलहनी फसलों में अरहर का विशेष स्थान है। अरहर की दाल में लगभग 20-21 प्रतिशत तक प्रोटीन पाई जाती है, साथ ही इस प्रोटीन का पाच्यमूल्य भी अन्य प्रोटीन से अच्छा होता है। अरहर की दीर्घकालीन प्रजातियॉं मृदा में 200 कि0ग्रा0 तक वायुमण्डलीय नाइट्रोजन  का स्थरीकरण कर मृदा उर्वरकता एवं उत्पादकता में वृद्धि करती है। शुष्क क्षेत्रों में अरहर किसानों द्वारा प्राथमिकता से बोई जाती है। असिंचित क्षेत्रों में इसकी खेती लाभकारी सि) हो सकती है क्योंकि गहरी जड़ के एवं अधिक तापक्रम की स्थिति में पत्ती मोड़ने के गुण के कारण यह शुष्क क्षेत्रों में सर्वउपयुक्त फसल है। महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक एवं आन्ध्र प्रदेश देश के प्रमुख अरहर उत्पादक राज्य हैं।

उन्नतशील प्रजातियॉं

शीघ्र पकने वाली प्रजातियॉं
उपास 120, पूसा 855, पूसा 33, पूसा अगेती, आजाद (के 91-25) जाग्रति (आईसीपीएल 151) , दुर्गा (आईसीपीएल-84031)ए प्रगति।
मध्यम समय में पकने वाली प्रजातियॉं
टाइप 21, जवाहर अरहर 4, आईसीपीएल 87119
(आशा) ए वीएसीएमआर 583
देर से पकने वाली प्रजातियॉं
बहार, बीएमएएल 13, पूसा-9
हाईब्रिड प्रजातियॉं
पीपीएच-4, आईसीपीएच 8
रबी बुवाई के लिए उपयुक्त प्रजातियॉं
बहार, शरद (डीए 11) पूसा 9, डब्लूबी 20
अग्रिम पंक्ति प्रदेशन अन्तर्गत शीघ्र, मध्यम व देर से पकने वाली उन्नत प्रजातियों ने विभिन्न स्थानीय/पुरानी प्रजातियों की अपेक्षा क्रमशः 94, 36 एवं 17 प्रतिशत अधिक उपज प्रदान की हैं। प्रमुख अरहर उत्पादक राज्यों हेतु संस्तुत उन्नत प्रजातियों की उपज निम्न तालिका में दर्शायी गयी है।
राज्य
प्रजाति
उपज कि0ग्रा0/है0
%वृद्धि
शीघ्र
हरियाणा
एच0 82-1 (पारस)
1127
पंजाब
पी0पी0एच0-4 (हाइब्रिड)
ए0एल0-201
1400
1295
उत्तर पद्रेश
उपास-120
स्थानीय
1295
817
46.8
उड़ीसा
उपास-120
गोकनपुर
337
173
94.8
तमिलनाडु
सी0ओ0पी0एच0-2
सी0ओ0-5
850
610
39.3
मध्यम
महाराष्ट्र
आई0सी0पी0एल0-87119 (आशा)
वी0एस0एम0आर0-583
स्थानीय
स्थानीय
1410
2185
1060
1278
33.0
70.9
गुजरात
आई0सी0पी0एल0-87119 (आशा)
जे0के0एम0-7
टी0-21
वी0डी0एन0-2
1762
1400
1207
887
45.9
57.8
छत्तीसगढ़
आई0सी0पी0एल0-87119 (आशा)
एन0-1481
514
407
26.3
मध्य प्रदेश
आई0सी0पी0एल0-87119 (आशा)
आई0सी0पी0एल0-87119 (आशा)
ए0के0पी0जी0-4101
जी0टी0-100
स्थानीय
वी0डी0एन0-2
स्थानीय
वी0डी0एन0-2
1410
1350
1600
1256
1060
1000
950
836
33.0
35.0
68.4
56.2
कर्नाटक
आई0सी0पी0एल0-87119 (आशा)
स्थानीय
1465
1240
18.4
आन्ध्र प्रदेश
आई0सी0पी0एल0-87119 (आशा)
1905
1452
31.1
देर
बिहार
पूसा-9
शरद
2142
2034
5.3
पूर्वीउत्तर प्रदेश
बहार
1995

 

बुआई का समय

शीघ्र पकने वाली प्रजातियों की बुआई जून के प्रथम पखवाड़े तथा विधि में तथा मध्यम देर से पकने वाली प्रजातियों की बुआई जून के द्वितीय पखवाड़े में करना चाहिए। बुआई सीडडिरल या हल के पीछे चोंगा बॉंधकर पंक्तियों में हों।

भूमि का चुनाव

अच्छे जलनिकास व उच्च उर्वरता वाली दोमट भूमि सर्वोत्तम रहती है। खेत में पानी का ठहराव फसल को भारी हानि पहुँचाता है।

खेत की तैयारी

मिट्‌टी पलट हल से एक गहरी जुताई के उपरान्त 2-3 जुताई हल अथवा हैरो से करना उचित रहता है। प्रत्येक जुताई के बाद सिंचाई एवं जल निकास की पर्याप्त व्यवस्था हेतु पाटा देना आवश्यक है।

उर्वरक

मृदा परीक्षण के आधार पर समस्त उर्वरक अन्तिम जुताई के समय हल के पीछे कूड़ में बीज की सतह से 2 से0मी0 गहराई व 5 से0मी0 साइड में देना सर्वोत्तम रहता है। प्रति हैक्टर 15-20 कि0ग्रा0 नाइट्रोजन , 50 कि0ग्रा0 फास्फोरस, 20 कि0ग्रा0 पोटाश व 20 कि0ग्रा0 गंधक की आवश्यकता होती है। जिन क्षेत्रों में जस्ता की कमी हो वहॉं पर 15-20 कि0ग्रा0 जिन्क सल्फेट प्रयोग करें। नाइट्रोजन  एवं फासफोरस की समस्त भूमियों में आवश्यकता होती है। किन्तु पोटाश एवं जिंक का प्रयोग मृदा पीरक्षण उपरान्त खेत में कमी होने पर ही करें। नत्रजन एवं फासफोरस की संयुक्त रूप से पूर्ति हेतु 100 कि0ग्रा0डाइ अमोनियम फासफेट एवं गंधक की पूर्ति हेतु 100 कि0ग्रा0 जिप्सम प्रति हे0 का प्रयोग करने पर अधिक उपज प्राप्त होती है।

बीजशोधन

मृदाजनित रोगों से बचाव के लिए बीजों को 2 ग्राम थीरम व 1 ग्राम कार्वेन्डाजिम प्रति कि0ग्राम अथवा 3 ग्राम थीरम प्रति कि0ग्राम की दर से शोधित करके बुआई करें। बीजशोधन बीजोपचार से 2-3 दिन पूर्व करें।

बीजोपचार

10 कि0ग्रा0 अरहर के बीज के लिए राइजोबियम कल्चर का एक पैकेट पर्याप्त होता है। 50 ग्रा0 गुड़ या चीनी को 1/2 ली0 पानी में घोलकर उबाल लें। घोल के ठंडा होने पर उसमें राइजोबियम कल्चर मिला दें। इस कल्चर में 10 कि0ग्रा0 बीज डाल कर अच्छी प्रकार मिला लें ताकि प्रत्येक बीज पर कल्चर का लेप चिपक जायें। उपचारित बीजों को छाया में सुखा कर, दूसरे दिन बोया जा सकता है। उपचारित बीज को कभी भी धूप में न सुखायें, व बीज उपचार दोपहर के बाद करें।

दूरी

पंक्ति से पंक्ति
45-60 से0मी0 तथा (शीघ्र पकने वाली)
60-75 से0मी0 (मध्यम व देर से पकने वाली)
पौध से पौध
10-15 से0मी0 (शीघ्र पकने वाली)
15-20 से0मी0 (मध्यम व देर से पकने वाली)
बीजदर
12-15 कि0ग्रा0 प्रति हे0।

सिंचाई एवं जल निकास

चूँकि  फसल असिंचित दशा में बोई जाती है अतः लम्बे समय तक वर्षा न होने पर एवं पूर्व पुष्पीकरण अवस्था तथा दाना बनते समय फसल में आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए। उच्च अरहर उत्पादन के लिए खेत में उचित जलनिकास का होना प्रथम शर्त है अतः निचले एवं अधो जल निकास की समस्या वाले क्षेत्रों में मेड़ो पर बुआई करना उत्तम रहता है।

खरपतवार नियंत्रण

प्रथम 60 दिनों में खेत में खरपतवार की मौजूदगी अत्यन्त नुकसानदायक होती है। हैन्ड हों या खुरपी से दो निकाईयॉं करने पर प्रथम बोआई के 25-30 दिन बाद एवं द्वितीय 45-60 दिन बाद खरपतवारों के प्रभावी नियंत्रण के साथ मृदा वायु-संचार में वृद्धि होने से फसल एवं सह जीवाणुओं की वृद्धि हेतु अनुकूल वातावरण तैयार होता है। किन्तु यदि पिछले वर्षों में खेत में खरपतवारों की गम्भीर समस्या रही हो तो अन्तिम जुताई के समय खेत में वैसालिन की एक कि0ग्रा0 सक्रिय मात्रा को 800-1000 ली0 पानी में घोलकर या लासो की 3 कि0ग्रा0 मात्रा को बीज अंकुरण से पूर्व छिड़कने से खरपतवारों पर प्रभावी नियन्त्रण पाया जा सकता है।

फसल सुरक्षा के तरीके

कीट नियन्त्रण
  • फलीमक्खी/फलीछेदक क्यूनाल फास या इन्डोसल्फान 35 ई0सी0, 20 एम0एल0/क्यूनालफास 25 ई0सी0 15 एम0एल0/मोनोक्रोटोफास 30 डबलू0एस0सी0 11 एम0एल0 प्रति 10 ली0 पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए तथा एक हैक्टेयर में 1000 लीटर घोल का प्रयोग करना चाहिए।
  • पत्ती लपेटक – इन्डोसल्फान 35 ई0सी0 20 एम0एल0 अथवा मोनोक्रोटोफास 36 डबलू0एस0सी0
  • एम0एल0 प्रति 10 ली0 पानी में घोलकर छिड़काव करें।
रोग नियन्त्रण
  • फाइटा्रेप्थोरा ब्लाइट – बीज को रोडोमिल 2 ग्रा0/किग्रा0 बीज से उपचारित करने बोयें। रोगरोधी प्रजातियॉं जैसे आशा, मारूथि बी0एस0एम0आर0-175 तथा वी0एस0एम0आर0-736 का चयन करना चाहिए।
  • बिल्ट – प्रतिरोधी प्रजातियों का उपयोग करें, बीज शोधित कर के बोयें। मृदा का सौर्यीकरण करें।
  • बन्ध्यमोजेक – प्रतिरोधी प्रजातियॉं जैसे शरद, बहार आशा, एम0ए0-3, मालवीय अरहर-1 आदि बोयें। रोगी पौधों को जला दें। वाहक कीट के नियन्त्रण हेतु मेटासिस्टाक का छिड़काव करें।

प्रमुख कीट

  • फली मक्‍खी
यह फली पर छोटा सा गोल छेद बनाती है। इल्‍ली अपना जीवनकाल फली के भीतर दानों को खाकर पूरा करती है एवं खाद में प्रौढ़ बनकर बाहर आती है। दानों का सामान्‍य विकास रूक जाता है।मादा छोटे व  काले रंग की होती है जो वृद्धिरत फलियों में अंडे रोपण करती है। अंडो से मेगट बाहर आते है ओर दाने को खाने लगते है। फली के अंदर ही मेगट शंखी में बदल जाती है जिसके कारण दानों पर तिरछी सुरंग बन जाती है ओर दानों का आकार छोटा रह जाता है। तीन सप्‍ताह में एक जीवन चक्र पूर्ण करती है।
  • फली छेदक इल्‍ली
छोटी इल्लियॉ फलियों के हरे उत्‍तकों को खाती है व बडे होने पर कलियों , फूलों फलियों व बीजों पर नुकसान करती है। इल्लियॉ फलियों पर टेढे – मेढे छेद बनाती है।
इस कीट की मादा छोटे सफेद रंग के अंडे देती है। इल्लियॉ पीली, हरी, काली रंग की होती है तथा इनके शरीर पर हल्‍की गहरी पटिटयॉ होती है। अनुकूल परिस्थितियों में चार सप्‍ताह में एक जीवन चक्र पूर्ण करती है।
  • फल्‍ली का मत्‍कुण
मादा प्राय: फलियों पर गुच्‍छों में अंडे देती है। अंडे कत्‍थई रंग के होते है। इस कीट के शिशु वयस्‍क दोनों ही फली एवं दानों का रस चूसते है, जिससे फली आडी-तिरछी हो जाती है एवं दाने सिकुड जाते है। एक जीवन चक्र लगभग चार सप्‍ताह में पूरा करते है।
  • प्‍लू माथ
इस कीट की इल्‍ली फली पर छोटा सा गोल छेद बनाती है। प्रकोपित दानों के पास ही इसकी विश्‍टा देखी जा सकती है। कुछ समय बाद प्रकोपित दानो के आसपास लाल रंग की फफूंद आ जाती है।
  • ब्रिस्‍टल ब्रिटल
ये भृंग कलियों, फूलों तथा कोमल फलियों को खाती है जिससे उत्‍पादन में काफी कमी आती है। यक कीट अरहर मूंग, उड़द , तथा अन्‍य दलहनी फसलों पर भी नुकसान पहुंचाता है। भृंग को पकडकर नष्‍ट कर देने से प्रभावी नियंत्रण हो जाता है।

कीटो का प्रभावी नियंत्रण

1.कृषि के समय
  • गर्मी में खेत की गहरी जुताई करें
  • शुद्ध अरहर न बोयें
  • फसल चक्र अपनाये
  • क्षेत्र में एक ही समय बोनी करना चाहिए
  • रासायनिक खाद की अनुशंसित मात्रा का प्रयोग करें।
  • अरहर में अन्‍तरवर्तीय फसले जैसे ज्‍वार, मक्‍का, या मूंगफली को लेना चाहिए।
2 . यांत्रिक विधि द्धारा
  • फसल प्रपंच लगाना चाहिए
  • फेरामेन प्रपंच लगाये
  • पौधों को हिलाकर इल्लियों को गिरायें एवं उनकों इकटठा करके नष्‍ट करें
  • खेत में चिडियाओं के बैठने की व्‍यवस्‍था करे।
3 . जैविक नियंत्रण द्वारा
  • एन.पी.वी 5000 एल.ई / हे. + यू.वी. रिटारडेन्‍ट 0.1 प्रतिशत + गुड 0.5 प्रतिशत मिश्रण को शाम के समय खेत में छिडकाव करें।
  • बेसिलस थूरेंजियन्‍सीस 1 किलोग्राम प्रति हेक्‍टर + टिनोपाल 0.1 प्रतिशत + गुड 0.5 प्रतिशत का छिड़काव करे।
4 जैव – पौध पदार्थ के छिड़काव द्वारा : –
  • निंबोली शत 5 प्रतिशत का छिड़काव करे।
  • नीम तेल या करंज तेल 10 -15 मी.ली. + 1 मी.ली. चिपचिपा पदार्थ (जैसे सेन्‍डोविट टिपाल) प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
  • निम्‍बेसिडिन 0.2 प्रतिशत या अचूक 0.5 प्रतिशत का छिड़काव करें।
  • रासायनिक नियंत्रण द्वारा
  • आवश्‍यकता पड़ने पर ही कीटनाशक दवाओं का प्रयोग करें।
  • फली मक्‍खी नियंत्रण हेतु संर्वागीण कीटनाशक दवाओं का छिडकाव करे जैसे डायमिथोएट 30 ई.सी 0.03 प्रतिशत मोनोक्रोटोफॉस 36 एस.एल. 0.04 प्रतिशत आदि।
फली छेदक इल्लियों के नियंत्रण के लिए
फेनवलरेट 0.4 प्रतिशत चूर्ण या क्‍लीनालफास 1.5 प्रतिशत चूर्ण या इन्‍डोसल्‍फान 4 प्रतिशत चूर्ण का 20 से 25 किलोग्राम / हे. के दर से भुरकाव करें या इन्‍डोसलफॉन 35 ईसी. 0.7 प्रतिशत या क्‍वीनालफास 25 ई.सी 0.05 प्रतिशत या क्‍लोरोपायरीफॉस 20 ई.सी . 0.6 प्रतिशत या फेन्‍वेलरेट 20 ई.सी 0.02 प्रतिशत या एसीफेट 75 डब्‍लू पी 0.0075 प्रतिशत या ऐलेनिकाब 30 ई.सी 500 ग्राम सक्रिय तत्‍व प्रति हे. या प्राफेनोफॉस 50 ई.सी एक लीटर प्रति हे. का छिड़काव करें। दोनों कीटों के नियंत्रण हेतु प्रथम छिडकाव सर्वागीण कीटनाशक दवाई का करें तथा 10 दिन के अंतराल से स्‍पर्श या सर्वागीण कीटनाशक दवाई का छिड़काव करें। कीटनाशक का तीन छिड़काव या भुरकाव पहला फूल बनने पर दूसरा 50 प्रतिशत फुल बनने पर और तीसरा फली बनने बनने की अवस्‍था पर करना चाहिए।

फसल की कटाई

सब्जियों के लिए उगाई गई फसल पत्तों और फलीयों के हरे होने पर काटी जाती है और दानों वाली फसल को 75-80% फलीयों के सूखने पर काटा जाता है। कटाई में देरी होने पर बीज खराब हो जाते हैं। कटाई हाथों और मशीनों द्वारा की जा सकती है। कटाई के बाद पौधों को सूखने के लिए सीधे रखें । गोहाई कर के दाने अलग किए जाते हैं और आम तौर पर डंडे से कूट कर गोहाई की जाती है।

कटाई के बाद

कटाई की हुई फसल पूरी तरह से सुखी हुई होनी चाहिए और फसल को संभाल कर रखने के समय प्लस बीटल से बचाएं।

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FAQ

🌾 अरहर की उन्नतशील खेती – FAQ (सवाल-जवाब)


प्र.1: अरहर फसल का कृषि में क्या महत्व है?
उ.1: अरहर एक प्रमुख दलहनी फसल है जिसमें लगभग 20–21% प्रोटीन पाया जाता है। यह मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिरीकरण (लगभग 200 किग्रा/हेक्टेयर) करके भूमि की उर्वरता बढ़ाती है।
प्र.2: अरहर की खेती किन राज्यों में प्रमुख रूप से की जाती है?
उ.2: महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश प्रमुख अरहर उत्पादक राज्य हैं।
प्र.3: अरहर की प्रमुख और उन्नतशील प्रजातियाँ कौन-सी हैं?
उ.3:
(क) शीघ्र पकने वाली – उपास 120, पूसा 855, पूसा 33, आज़ाद (K 91-25), दुर्गा (ICP-84031), प्रगति।
(ख) मध्यम अवधि वाली – टाइप 21, जवाहर अरहर 4, आशा (ICPL 87119), VSMR 583।
(ग) देर से पकने वाली – बहार, पूसा 9, BMAL 13।
(घ) हाईब्रिड – PPH-4, ICPH-8।
(ङ) रबी बुवाई के लिए – बहार, शरद (DA-11), पूसा 9, WB-20।
प्र.4: अरहर की बुआई का सही समय क्या है?
उ.4:
  • शीघ्र पकने वाली किस्में – जून के प्रथम पखवाड़े में
  • मध्यम व देर से पकने वाली किस्में – जून के द्वितीय पखवाड़े में
प्र.5: अरहर के लिए उपयुक्त भूमि कैसी होनी चाहिए?
उ.5: अच्छी जलनिकासी वाली दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है। पानी का ठहराव फसल को नुकसान पहुंचाता है।
प्र.6: खेत की तैयारी कैसे करें?
उ.6:
  • मिट्टी पलटने वाले हल से 1 गहरी जुताई करें।
  • फिर 2–3 बार हल या हैरो चलाएँ।
  • प्रत्येक जुताई के बाद पाटा चलाएँ ताकि मिट्टी भुरभुरी और समतल हो जाए।
प्र.7: अरहर में कौन-कौन से उर्वरक डालें और कितनी मात्रा में?
उ.7: प्रति हेक्टेयर:
  • नाइट्रोजन – 15–20 किग्रा
  • फास्फोरस – 50 किग्रा
  • पोटाश – 20 किग्रा
  • गंधक – 20 किग्रा
  • जिंक सल्फेट – 15–20 किग्रा (जहाँ जिंक की कमी हो)
    👉 100 किग्रा DAP + 100 किग्रा जिप्सम डालने से बेहतर उपज मिलती है।
प्र.8: बीज उपचार और बीजोपचार कैसे करें?
उ.8:
  • बीज शोधक: थीरम 2 ग्राम + कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति किग्रा बीज।
  • राइजोबियम कल्चर: 10 किग्रा बीज के लिए 1 पैकेट।
  • गुड़ का घोल बनाकर उसमें कल्चर मिलाएँ, बीज को लेपित करें और छाँव में सुखाकर बोएँ।
प्र.9: बुआई के समय बीज की दूरी कितनी रखें?
उ.9:
  • शीघ्र पकने वाली: पंक्ति से पंक्ति 45–60 से.मी., पौधे से पौधे 10–15 से.मी.
  • मध्यम व देर वाली: पंक्ति से पंक्ति 60–75 से.मी., पौधे से पौधे 15–20 से.मी.
प्र.10: बीज की मात्रा कितनी चाहिए?
उ.10: प्रति हेक्टेयर 12–15 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है।
प्र.11: अरहर की फसल को सिंचाई की कब आवश्यकता होती है?
उ.11:
  • सामान्यतः अरहर असिंचित फसल है।
  • लेकिन यदि वर्षा न हो तो फूल आने और दाना बनने की अवस्था में सिंचाई करें।
  • जलनिकास की उत्तम व्यवस्था जरूरी है।
प्र.12: खरपतवार नियंत्रण कैसे करें?
उ.12:
  • पहली निराई: बुवाई के 25–30 दिन बाद।
  • दूसरी निराई: 45–60 दिन बाद।
  • यदि खरपतवार की समस्या अधिक हो तो अंतिम जुताई के समय
    वैसालिन 1 किग्रा सक्रिय तत्व/हे. या लासो 3 किग्रा/हे. छिड़कें।
प्र.13: अरहर के प्रमुख कीट कौन-कौन से हैं?
उ.13:
  1. फली मक्खी – फलियों पर छेद बनाकर दाने खाती है।
  2. फली छेदक इल्लियाँ – फूल, फलियाँ और दाने नष्ट करती हैं।
  3. फली का मट्कुण – फलियों और दानों का रस चूसता है।
  4. प्लू मथ – फली पर छेद बनाकर दाने खराब करती है।
  5. ब्रिस्टल बीटल – कलियाँ और कोमल फलियाँ खाती है।
प्र.14: कीट नियंत्रण के प्रभावी तरीके कौन से हैं?
उ.14:
(क) कृषि उपाय:
  • फसल चक्र अपनाएँ
  • एक साथ बोनी करें
  • ज्वार, मक्का, मूंगफली जैसी अंतरवर्ती फसलें लें
(ख) यांत्रिक नियंत्रण:
  • फेरोमोन ट्रैप लगाएँ
  • पौधों को हिलाकर इल्लियाँ गिराएँ
  • खेत में पक्षियों के बैठने की व्यवस्था करें
(ग) जैविक नियंत्रण:
  • एन.पी.वी. 5000 एल.ई./हे. + गुड़ 0.5% का शाम को छिड़काव
  • नीम या करंज तेल का 10–15 मि.ली./ली. पानी में घोल बनाकर छिड़काव
(घ) रासायनिक नियंत्रण:
  • फली मक्खी के लिए डायमिथोएट 30 EC (0.03%) या मोनोक्रोटोफॉस 36 SL (0.04%)
  • फली छेदक के लिए फेनवलरेट, क्विनालफॉस, क्लोरोपायरीफॉस आदि का छिड़काव करें।
  • छिड़काव तीन बार करें —
    1. फूल आने पर
    2. 50% फूल पर
    3. फलियाँ बनने पर
प्र.15: अरहर की फसल की कटाई कब करनी चाहिए?
उ.15:
  • सब्जी हेतु – जब फलियाँ हरी हों।
  • दाने हेतु – जब 75–80% फलियाँ सूख जाएँ।
  • कटाई हाथ या मशीन से की जा सकती है।
  • कटाई के बाद पौधों को सुखाकर गोहाई करें (डंडे से कूटकर दाने निकालें)।
प्र.16: कटाई के बाद फसल को कैसे सुरक्षित रखें?
उ.16:
  • पूरी तरह सुखाकर भंडारण करें।
  • दानों को पल्स बीटल से बचाने के लिए साफ और सूखी जगह पर रखें।