आलू की खेती

आलू की वैज्ञानिक खेती

आलू एक अर्द्धसडनशील सब्जी वाली फसल है। इसकी खेती रबी मौसम या शरदऋतु में की जाती है। इसकी उपज क्षमता समय के अनुसार सभी फसलों से ज्यादा है इसलिए इसको अकाल नाशक फसल भी कहते हैं। इसका प्रत्येक कंद पोषक तत्वों का भण्डार है, जो बच्चों से लेकर बूढों तक के शरीर का पोषण करता है। अब तो आलू एक उत्तम पोष्टिक आहार के रूप में व्यवहार होने लगा है। बढ़ती आबादी के कुपोषण एवं भुखमरी से बचाने में एक मात्र यही फसल मददगार है।

खेत का चयन

ऊपर वाली भीठ जमीन जो जल जमाव एवं ऊसर से रहित हो तथा जहाँ सिंचाई की सुविधा सुनिश्चित हो वह खेत आलू की खेती के लिए उपयुक्त है। खरीफ मक्का एवं अगात धान से खाली किए गए खेत में भी इसकी खेती की जाती है।

ज़मीन की तैयारी

खेत को एक बार 20-25 सैं.मी. गहरा जोतकर अच्छे ढंग से बैड बनाएं। जोताई के बाद 2-3 बार तवियां फेरें और फिर 2-3 बार सुहागा फेरें। बिजाई से पहले खेत में नमी की मात्रा बनाकर रखें। बिजाई के लिए दो ढंग मुख्य तौर पर प्रयोग किए जाते हैं:

1. मेंड़ और खालियों वाला ढंग

2. समतल बैडों वाला ढंग

बिजाई

बिजाई का समय
अधिक पैदावार के लिए बिजाई सही समय पर करनी जरूरी है। बिजाई के लिए सही तापमान अधिक से अधिक 30-32° सैल्सियस और कम से कम 18-20° सैल्सियस होता है। अगेती बिजाई 25 सितंबर से 10 अक्तूबर तक, दरमियाने समय वाली बिजाई अक्तूबर के पहले से तीसरे सप्ताह तक और पिछेती बिजाई अक्तूबर के तीसरे सप्ताह से नवंबर के पहले सप्ताह तक करें। बसंत ऋतु के लिए जनवरी के दूसरे पखवाड़े बिजाई का सही समय है।
फासला
बिजाई के लिए आलुओं के बीच में 20 सैं.मी. और मेड़ में 60 सैं.मी. का फासला हाथों से या मकैनीकल तरीके से रखें। फासला आलुओं के आकार के अनुसार बदलता रहता है। यदि आलू का व्यास 2.5-3.0 सैं.मी. हो तो फासला 60×15 सैं.मी. और यदि आलू का व्यास 5-6 सैं.मी. हो तो फासला 60×40 सैं.मी. होना चाहिए।
बीज की गहराई
6-8 इंच गहरी खालियां बनाएं। फिर इनमें आलू रखें और थोड़ा सा ज़मीन से बाहर रहने दें।
बिजाई का ढंग
बिजाई के ट्रैक्टर से चलने वाली या ऑटोमैटिक बिजाई के लिए मशीन का प्रयोग करें।

 

बीज

बीज की मात्रा
बिजाई के लिए छोटे आकार के आलू 8-10 क्विंटल, दरमियाने आकार के 10-12 क्विंटल और बड़े आकार के 12-18 क्विंटल प्रति एकड़ के लिए प्रयोग करें।
बीज का उपचार
बिजाई के लिए सेहतमंद आलू ही चुने। बीज के तौर पर दरमियाने आकार वाले आलू, जिनका भार 25-125 ग्राम हो, प्रयोग करें। बिजाई से पहले आलुओं को कोल्ड स्टोर से निकालकर 1-2 सप्ताह के लिए छांव वाले स्थान पर रखें ताकि वे अंकुरित हो जायें। आलुओं के सही अंकुरन के लिए उन्हें जिबरैलिक एसिड 1 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर एक घंटे के लिए उपचार करें। फिर छांव में सुखाएं और 10 दिनों के लिए हवादार कमरे में रखें। फिर काटकर आलुओं को मैनकोजेब 0.5 प्रतिशत घोल (5 ग्राम प्रति लीटर पानी) में 10 मिनट के लिए भिगो दें। इससे आलुओं को शुरूआती समय में गलने से बचाया जा सकता है। आलुओं को गलने और जड़ों में कालापन रोग से बचाने के लिए साबुत और काटे हुए आलुओं को 6 प्रतिशत मरकरी के घोल (टैफासन) 0.25 प्रतिशत (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) में डालें।

 

खाद एवं उर्वरक

आलू बहुत खाद खाने वाली फसल है। यह मिट्टी के ऊपरी सतह से ही भोजन प्राप्त करती है। इसलिए इसे प्रचुर मात्रा में जैविक एवं रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता होती है।

इसमें सड़े गोबर की खाद 200 क्विंटल तथा 5 क्विंटल खल्ली प्रति हें. की दर से डाला जाता है। खल्ली में अंडी, सरसों, नीम एवं करंज जो भी आसानी से मिल जाय उसका व्यवहार करे। ऐसा करने से मिट्टी की उर्वराशक्ति हमेशा कायम रहती है तथा रासायनिक उर्वरक पौधों को आवश्यकतानुसार सही समय पर मिलता रहता है।

रासायनिक उर्वरकों में 150 किलोग्राम नेत्रजन 330 किलोग्राम यूरिया के रूप में प्रति हें. की दर से डाला जाता है। यूरिया की आधी मात्रा यानि 165 किलोग्राम रोपनी के समय तथा शेष 165 किलोग्राम रोपनी के 30 दिन बाद मिट्टी चढ़ाने के समय डाला जाता है। 90 किलोग्राम स्फुर तथा 100 किलोग्राम पोटाश प्रति हें. की दर से डाला जाता है। स्फुर के लिए डी.ए.पी. या सिंगल सुपर फास्फेट दोनों में से किसी एक ही खाद का प्रयोग करें। डी.ए.पी. की मात्रा 200 किलोग्राम प्रति हें. तथा सिंगल सुपर फास्फेट की मात्रा 560 किलोग्राम प्रति हें. तथा पोटाश के लिए 170 किलोग्राम म्यूरिएट ऑफ़ पोटाश प्रति हें. की दर से व्यवहार करें।

सभी उर्वरकों को एक साथ मिलाकर अंतिम जुलाई के पहले खेत में छिंठ कर जुताई के बाद पाटा देकर मिट्टी में मिला दिया जाता है।

रोपनी के समय आलू की पंक्तियों में खाद डालना अधिक लाभकर है परन्तु ध्यान रहे उर्वरक एवं आलू के कंद में सीधा सम्पर्क न हो नहीं तो कंद सड़ सकता है। इसलिए व्हील हो या लहसूनिया हल से नाला बनाकर उसी में खाद डालें। खाद की नाली से 5 से 10 सेंमी. की दूरी पर दूसरी नाली में आलू का कंद डालें।

यदि पोटेटो प्लांटर उपलब्ध हो तो उसके अनुसार उर्वरक प्रयोग में परिवर्तन किया जा सकता है।

खरपतवार नियंत्रण

आलुओं के अंकुरन से पहले मैटरीबिउज़िन 70 डब्लयु पी 200 ग्राम या एलाकलोर 2 लीटर प्रति एकड़ डालें।यदि नदीनों का हमला कम हो तो बिजाई के 25 दिन बाद मैदानी इलाकों में और 40-45 दिनों के बाद पहाड़ी इलाकों में जब फसल 8-10 सैं.मी. कद की हो जाये तो नदीनों को हाथों से उखाड़ दें। आमतौर पर आलुओं की फसल में नदीन नाशक की जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि जड़ों को मिट्टी लगाने से सारे नदीन नष्ट हो जाते हैं।
नदीनों के हमले को कम करने के लिए और मिट्टी की नमी को बचाने के लिए मलचिंग का तरीका भी प्रयोग किया जा सकता है, जिसमें मिट्टी पर धान की पराली और खेत के बची-कुची सामग्री बिछायी जा सकती है। बिजाई के 20-25 दिन बाद मलचिंग को हटा दें।

 

सिंचाई

खेत में नमी के अनुसार बिजाई के तुरंत बाद या 2-3 दिन बाद सिंचाई करें। सिंचाई हल्की करें, क्योंकि खुले पानी से पौधे गलने लग जाते हैं। दरमियानी से भारी ज़मीन में 3-4 सिंचाइयां और रेतली ज़मीनों में 8-12 सिंचाइयों की जरूरत पड़ती है। दूसरी सिंचाई मिट्टी की नमी के अनुसार बिजाई से 30-35 दिनों के बाद करें। बाकी की सिंचाइयां ज़मीन की नमी और फसल की जरूरत के अनुसार करें। कटाई के 10-12 दिन पहले सिंचाई करना बंद कर दें।

पौध संरक्षण

भूमिगत कीटों से सुरक्षा हेतु रोपनी के समय ही फोरेट-10 जी या डर्सभान 10 जी. जिसमें क्लोरोपायरिफास नामक कीट नाशी दवा रहता है उसका 10 किलोग्राम प्रति हें. की दर से उर्वरकों के साथ ही मिलाकर रोपनी पूर्व व्यवहार किया जाता है। ऐसा करने से धड़ छेदक कीटों से जी मिट्टी में ही दबे रहते हैं उसे सुरक्षा मिल जाती है।

पिछात झुलसा रोग से बचाव के लिए 20 दिसम्बर से लेकर 20 जनवरी तक 10 से 15 दिन के अंतराल पर फफूंदनाशक दवा का छिड़काव करें। प्रथम छिड़काव में इन्ड़ोफिल एम-45, दूसरे छिड़काव में ब्लाइटॉक्स एवं तीसरे छिड़काव में इन्ड़ोफिल एम-45, दूसरे छिड़काव में ब्लाइटॉक्स एवं तीसरे छिड़काव में आवश्यकतानुसार रीडोमील फफूंदनाशक दवा का 2.5 ग्राम/लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। प्रति हेक्टेयर 2.5 किलोग्राम दवा एवं 1000 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। लगभग 60 टिन पानी प्रति हें. लग जाता है। ऐसा करने से फसल सुरक्षा बढ़ जाती है।

14 जनवरी के आस-पास लाही गिरने का समय हो जाता है। यदि लाही का प्रकोप हो तो मेटासिस्टोक्स नामक कीटनाशी दवा का प्रति लीटर पानी में एक मिली. दवा डालकर स्प्रे किया जाता है। दवा नापने के लिए प्लास्टिक सिरीज का व्यवहार करें। लाही नियंत्रण से आलू में कुकरी रोग यानि लीफ रोल नाम विषाणु रोग का खतरा कम हो जाता है।

फसल की कटाई

डंठलों की कटाई : आलुओं को विषाणु से बचाने के लिए यह क्रिया बहुत जरूरी है और इससे आलुओं का आकार और गिणती भी बढ़ जाती है। इस क्रिया में सही समय पर पौधे को ज़मीन के नज़दीक से काट दिया जाता है। इसका समय अलग अलग स्थानों पर अलग है और चेपे की जनसंख्या पर निर्भर करता है। उत्तरी भारत में यह क्रिया दिसंबर महीने में की जाती है।
पत्तों के पीले होने और ज़मीन पर गिरने से फसल की पुटाई की जा सकती है। फसल को डंठलों की कटाई के 15-20 दिन बाद ज़मीन की नमी सही होने से उखाड़ लें। पुटाई ट्रैक्टर और आलू उखाड़ने वाली मशीन से या कही से की जा सकती है। पुटाई के बाद आलुओं को सुखाने के लिए ज़मीन पर बिछा दें और 10-15 दिनों तक रखें ताकि उनपर छिल्का आ सके। खराब और सड़े हुए आलुओं को बाहर निकाल दें।

कटाई के बाद

सब से पहले आलुओं को छांट लें और खराब आलुओं को हटा दें। आलुओं को व्यास और आकार के अनुसार बांटे। बड़े आलू चिपस बनने के कारण अधिक मांग में रहते हैं। आलुओं को 4-7 डिगरी सैल्सियस तापमान और सही नमी पर भंडारण करें।

 

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FAQ

🌿 आलू की वैज्ञानिक खेती – FAQ (सवाल-जवाब)

प्र.1: आलू की फसल को “अकाल नाशक फसल” क्यों कहा जाता है?
उ.1: क्योंकि इसकी उपज क्षमता बहुत अधिक होती है और यह कम समय में तैयार हो जाती है। इसलिए यह भूखमरी और कुपोषण से बचाने में मदद करती है।

प्र.2: आलू की खेती किस मौसम में की जाती है?
उ.2: आलू की खेती मुख्य रूप से रबी मौसम या शरद ऋतु में की जाती है।

प्र.3: आलू की खेती के लिए किस प्रकार की भूमि उपयुक्त होती है?
उ.3: ऐसी भूमि जो ऊँची हो, जिसमें जल जमाव न होता हो और सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो। खरीफ मक्का या अगात धान के बाद भी इसकी खेती की जा सकती है।

प्र.4: आलू की बुवाई के लिए जमीन कैसे तैयार करें?
उ.4:
  • खेत को 20–25 से.मी. गहराई तक जोतें।
  • 2–3 बार तविया और सुहागा चलाएँ।
  • नमी बनाए रखें।
  • दो मुख्य विधियाँ हैं:
    1. मेंड़ और खालियों वाली विधि
    2. समतल बैड विधि

प्र.5: आलू की बुवाई का सही समय क्या है?
उ.5:
  • अगेती बुवाई: 25 सितम्बर से 10 अक्तूबर
  • दरमियानी: अक्तूबर के पहले से तीसरे सप्ताह तक
  • पिछेती: अक्तूबर के तीसरे सप्ताह से नवम्बर के पहले सप्ताह तक
  • बसंत ऋतु की बुवाई: जनवरी के दूसरे पखवाड़े में

प्र.6: आलू की कतारों और पौधों के बीच कितना फासला रखना चाहिए?
उ.6:
  • पंक्तियों के बीच: 60 से.मी.
  • पौधों के बीच: 20 से.मी.
    (छोटे आकार के लिए 60×15 से.मी., बड़े आलू के लिए 60×40 से.मी.)

प्र.7: बुवाई के लिए बीज की कितनी मात्रा चाहिए?
उ.7:
  • छोटे आलू: 8–10 क्विंटल/एकड़
  • मध्यम आकार: 10–12 क्विंटल/एकड़
  • बड़े आलू: 12–18 क्विंटल/एकड़

प्र.8: बीज का उपचार कैसे करें?
उ.8:
  • स्वस्थ और अंकुरित बीज चुनें।
  • जिबरैलिक एसिड (1 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) से 1 घंटे उपचार करें।
  • मैनकोजेब 0.5% घोल में 10 मिनट डुबोएँ।
  • छाँव में सुखाएँ और रोपाई करें।

प्र.9: आलू की खेती में कौन-कौन से उर्वरक डालें?
उ.9:
  • सड़ी गोबर की खाद: 200 क्विंटल/हेक्टेयर
  • खल्ली: 5 क्विंटल/हेक्टेयर
  • रासायनिक उर्वरक:
    • यूरिया: 330 कि.ग्रा. (दो भागों में)
    • डीएपी: 200 कि.ग्रा.
    • पोटाश (MOP): 170 कि.ग्रा.

प्र.10: खरपतवार नियंत्रण कैसे करें?
उ.10:
  • अंकुरण से पहले मैट्रीब्युटजिन 70WP (200 ग्राम) या एलाकलोर (2 लीटर/एकड़) छिड़कें।
  • जरूरत पड़ने पर हाथ से निराई-गुड़ाई करें।
  • मल्चिंग करने से नमी बनी रहती है और खरपतवार कम होते हैं।

प्र.11: आलू की सिंचाई कब और कितनी बार करनी चाहिए?
उ.11:
  • पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद करें।
  • भारी मिट्टी में 3–4 सिंचाइयाँ, रेतली में 8–12 सिंचाइयाँ।
  • कटाई से 10–12 दिन पहले सिंचाई बंद कर दें।

प्र.12: फसल को रोग और कीटों से कैसे बचाएँ?
उ.12:
  • रोपाई के समय फोरेट-10G या डर्सबान 10G (10 कि.ग्रा./हेक्टेयर) डालें।
  • झुलसा रोग से बचाव के लिए दिसम्बर से जनवरी तक 10–15 दिन के अंतर पर फफूंदनाशी (जैसे इंडोफिल M-45 या ब्लाइटॉक्स) का छिड़काव करें।
  • लाही कीट के लिए मेटासिस्टॉक्स 1 मि.ली./लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

प्र.13: आलू की फसल की कटाई कब करें?
उ.13:
  • जब पौधों की पत्तियाँ पीली होकर गिरने लगें।
  • डंठल काटने के 15–20 दिन बाद खुदाई करें।
  • खुदाई मशीन या हाथ से की जा सकती है।

प्र.14: कटाई के बाद आलू का भंडारण कैसे करें?
उ.14:
  • आलुओं को छाँटकर आकार के अनुसार अलग करें।
  • 4–7°C तापमान और उचित नमी में स्टोर करें।
  • सड़े या रोगग्रस्त आलू हटा दें।

प्र.15: आलू की खेती से क्या लाभ होते हैं?
उ.15:
आलू की फसल कम समय में तैयार होती है, पोषण से भरपूर होती है और किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाती है। यह भारत की सबसे अधिक उत्पादन देने वाली सब्जी फसलों में से एक है।